
ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में चौंकाने वाला खुलासा किया है। इसके मुताबिक मानवों की अकल दाढ़ विलुप्त होने के कगार पर है और इंसान की बाहों में एक अतिरिक्त आर्टरी (धमनी) पाई जा रही है। वैज्ञानिक इस प्रक्रिया को आधुनिक मानव में माइक्रोइवोल्युशन (सूक्ष्म बदलाव) की संज्ञा दे रहे हैं।
दरअसल, 20वीं शताब्दी में ऐसा माने जाने लगा कि इंसान इतना विकसित हो चुका है कि शारीरिक तौर पर कोई मूलभूत विकास होने की संभावना नगण्य है। लेकिन, यह धारणा हाल के एक शोध के निष्कर्षों से बदल गई है। जर्नल ऑफ एनाटॉमी में प्रकाशित शोध के अनुसार मनुष्य की बाहों में एक अतिरिक्त आर्टरी (धमनी) पाई जा रही है। शोधकर्ता प्रोफेसर मेसिज हेनबेर्ग के अनुसार यह एक खास किस्म की धमनी है। यह तब उभरती है, जब बच्चा गर्भ में विकास की प्रारंभिक अवस्था में होता है। इससे बच्चे के विकसित हो रहे हाथों में खून का प्रसार होता है। लेकिन, जैसे ही रेडियल और अलनल (खास किस्म की धमनियां) विकसित होती हैं, ये मीडियन धमनी विलुप्त हो जाती है।
आश्चर्य की बात यह है कि हर तीन में से एक व्यक्ति में ये मीडियन धमनी विलुप्त नहीं होती। बल्कि ऐसे लोगों के शरीर में दो की जगह तीन धमनियां पाई जा रही हैं। हेनबेर्ग का कहना है कि तीसरी धमनी को लेकर अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इससे कोई फायदा है। लेकिन, इसका नुकसान भी नहीं है।
इसके साथ ही मानवों में अकल दाढ़ विलुप्त होने के कगार पर है। ऑस्ट्रेलिया के फ्लिंडर्स यूनिवर्सिटी के डॉ. टेघन लुकस का कहना है कि मनुष्य का मुंह छोटा होता जा रहा है। ऐसे में अकल दाढ़ के लिए जगह नहीं बच रही है। खान-पान में बदलाव से भी यह विलुप्त हो रही है।
अब कच्चा खाने की मनुष्य की आदत छूट चुकी है। उसे चबाने की जरूरत नहीं पड़ रही है। शुरुआत में जब ऐसे बदलाव दिखे, तब वैज्ञानिकों ने 20वीं शताब्दी में जन्मे लोगों के शवों की जांच करनी शुरू की। उन्होंने पाया कि कुछ लोगों के हाथों और पैरों में अतिरिक्त हड्डी पाई गई। कुछ लोगों के पंजों में भी हडि्डयां जुड़ी पाई गईं। 250 सालों में मनुष्य की संरचना में तेजी से अजीब बदलाव आए हैं।
चार्ल्स डार्विन ने बताया था- सभी जीव परिस्थिति के अनुसार बदलते हैं
नवंबर 1869 को ‘ऑन द ओरिजन ऑफ इस्पीशिस’ किताब में वैज्ञानिक चार्ल्स डार्विन ने इवोल्यूशन का सिद्धांत दुनिया को दिया। इसके अनुसार सारे जीव जंतु समय और परिस्थिति के अनुसार बदलते रहे हैं। और जो बदलने में सक्षम नहीं रहे, वो विलुप्त हो गए। होमोसेपियन के तौर पर विकसित होने से पहले मनुष्य जाति कम से कम तीन से चार तरीके के बदलाव अपने शारीरिक संरचना में देख चुका है।
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