दिल्ली एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया के अनुसार, कोरोना मरीज मिलने की लगातार बढ़ती रफ्तार की बड़ी वजह बिना लक्षण वाले मरीजों को होम आइसोलेशन में रखने की नीति है। पेश है डॉ. गुलेरिया से बातचीत के प्रमुख अंश...
कई राज्य मरीजों को होम आइसोलेशन में रख रहे हैं, क्या यह तरीका सही है? बिना लक्षणों वाले मरीजों को संस्थागत आइसोलेशन में ही रखना चाहिए। घरों में अक्सर लोग खास सावधानियां नहीं बरत पाते। मरीजों को कई बार लगता है कि वे ठीक हो चुके हैं। बुखार की दवा लेकर बाजार भी चले जाते हैं। इससे न सिर्फ उनकी स्थिति गंभीर होती है, बल्कि संक्रमण का खतरा भी बढ़ जाता है। आप डेटा देखें तो पाएंगे कि कंटेनमेंट जोन से बाहर उन्हीं स्थानों पर नए क्लस्टर बन रहे हैं, जहां लोगों को होम आइसोलेशन में रखा जा रहा है।
कई जगह मरीजों की संख्या कम हुई, फिर अचानक दोबारा बढ़ी, ऐसा क्यों?
लोगों को जब लगता है कि मरीज कम आ रहे हैं तो कुछ लापरवाहियां हो रही हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका में केस कम होने लगे थे तो लोगों ने पार्टियां शुरू कर दीं, बीच पर जाने लगे। नतीजतन वहां पहले 30 हजार मरीज आ रहे थे, अब औसतन 60 हजार मिलने लगे हैं।
रेमडेसिविर और टॉसिलिजुमैब जैसी दवा इलाज में कितनी कारगर है?
इन दवाओं का उपयोग बहुत सीमित है। लेकिन, कुछ डॉक्टर बिना लक्षण वाले मरीजों को भी रेमडेसिविर देना शुरू कर देते हैं। यह बहुत खतरनाक साबित हो सकती है। इन दवाओं से लिवर और किडनी खराब होने का खतरा रहता है। शेष पेज-04 पर
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