
कोरोना महामारी के चलते जारी लॉकडाउन में फंसे बिहार के प्रवासी मजदूरों की हालत दयनीय हो गई। मजदूर हर हाल में अपने राज्य लौटना चाहता है। जिसकी सबसे बड़ी दिक्कत यहां दो वक्त का खाना भी नसीब नहीं हो रहा है। मजदूरों की इस हालत ने दिल्ली सरकार के खाना और राशन बांटनेे के दावों की पोल खोलकर रख दी। भास्कर टीम ने गुरुवार को बिहार लौट रहे मजदूरों से दिल्ली सरकार से राशन और खाना मिलने के बावजूद घर जाने की वजह की जानने की कोशिश की। तो केजरीवाल के दावों की पोल खुल गई।
ईस्ट दिल्ली के वेस्ट विनोद नगर स्थित राजकीय सर्वोदय बाल विद्यालय के बाहर और अंदर लाइनों में लगे प्रवासियों ने कहा कि वे इसलिए अपने घरों को वापस जा रहे हैं क्यों यहां कोरोना के बजाय भूख से मर जाएंगे। अपने परिवार के साथ दरभंगा जा रहे विनोद कुमार और राजेश कुमार राय ने बताया कि उन्हें एक भी दिल्ली में राशन नहीं मिला। ऐसे में वे परिवार को लेकर गांव जा रहे हैं। कामधंधा छूट गया है तो यहां रह कर भूख से मर जाएंगे।
लोगों को राशन के लिए टरकाते रहे अफसर
बिहार के अररिया जिले के जितेंद्र कुमार मंडल, राजेश मंडल, प्रिंस कुमार, नरेंद्र कुमार, विरेंदर मंडल ने बताया कि वे िदल्ली के गोपालपुर में रहते थे। लॉकडाउन के दौरान उन्हें सिर्फ एक बार एक किलो चावल और 4 किलो गेहूं मिले थे। उसके बाद वे राशन के लिए भटकते रहे। लेकिन किसी ने राशन नहीं दिया वे सरकारी अफसरों के चक्कर लगाते रहे। लेकिन किसी ने मदद नहीं की।
ऐसे में दिल्ली सरकार की ओर से स्कूलों में बांटे जा रहे खाने के लिए लाइन में लगते थे। लेकिन जब तक नंबर आता था तब तक खाना खत्म हो जाता था। ऐसे में उन्होंने बिहार से रिश्तेदारों से उधार पैसे मंगवाकर खाने का इंतजाम किया। अब कामधंधा छूट गया है तो घर जा रहे हैं। यही बात सीतामढ़ी के प्रमोद, जनक महतो, राजकिशोर महतो, हसन, बबलू, फिरदौस और राजेश कुमार राय ने भी कही।
ट्रेन कब मिलेेगी पता नहीं, स्कूल के बाहर लोगों की भीड़
वेस्ट विनोद नगर स्थित स्कूल से प्रवासियों को बिहार भेजा जा रहा है। यहां से डीटीसी की बसों में बिठाकर रेलवे स्टेशन ले जाया जाता है। स्कूल में करीब 2 हजार लोगों के रुकने की जगह है। लेकिन यहां कई हजार लोगों की भीड़ है। घर जाने के लिए लोग दो-तीन दिन से लाइनों में लगे है। जिन लोगों ने ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करावाया और कनंफर्म नहीं हुआ। फिर भी वे लाइनों में लग गए। मधुबनी के कुसुम कुमार ने बताया कि वह परिवार के साथ पुरानी कोंडली में रहता था। लेकिन मकान मालिक ने घर खाली करवा दिया।
वह परिवार के साथ पिछले तीन दिन से स्कूल के बाहर फुटपाथ पर ही रह रहा है। लेकिन कोई मदद नहीं कर रहा है। साथ में छोटे बचे और बहने भी है। वहीं नालंदा के दलीप प्रसाद यादव और छपरा के मुकेश ने बताया कि घर से उधार पैसे मंगवाकर दो महिने का समय काटा। कहीं से भी एक बार भी राशन नहीं मिला। लाइनों में लगते थे तो नंबर आता तब तक खाना ही खत्म हो जाता था। अब घर जाने के अलावा उनके पास कोई सहारा नहीं है। गांव में भी बच्चे परेशान है।
अफसर बोले फैमिली वालों को ही मिलेगा राशन
सीतामढ़ी के रहने वाले सुभाष कुमार ने बताया कि वे कई बार राशन के सरकारी अफसरों के पास गए। लेकिन उन्हें ये कहकर हर बार लौटा देते। वे दिल्ली के जिस इलाके में रहते थे। वहां स्कूलों में पका भोजन तक नहीं मिलता था। मकान मालिक किराए के लिए परेशान करता था।
गुरुवार को बिहार के मधुबनी के लिए 1400 यात्रियों को घर भेजा गया है। स्कूल के बाहर भीड़ लगने का कारण लोग बिना मैसेज भेजे ही यहां पर इकट्ठा हो रहे है। समझा भी रहे हैं लेकिन घर जाने के बेबस प्रवासी मजदूर मानने को तैयार नहीं है। यहां पर लोगों को ठहराने की क्षमता करीब 2000 की ही है।
राजीव त्यागी, एसडीएम, ईस्ट दिल्ली
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