जीवन मंत्र डेस्क. जया एकादशी पर बृहस्पति, मंगल और शनिस्वराशि में स्थित रहेंगे वहीं चंद्रमा, शुक्र और राहु-केतु अपनी उच्च राशि में रहेंगे। ग्रहों की इस शुभ स्थिति से 3 राजयोग बन रहे हैं। जया एकादशी पर शुभ स्थिति में ग्रहों के होने से पूजा और व्रत का पूरा फल भी मिलता है। भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि जया एकादशी बहुत ही पुण्यदायी है। इस एकादशी का व्रत विधि-विधान करने से तथा ब्राह्मण को भोजन कराने से व्यक्ति नीच योनि जैसे भूत, प्रेत, पिशाच की योनि से मुक्त हो जाता है। इस बार जया एकादशी 5 फरवरी यानी आज है।
एकादशी का महत्व
भगवान शिव ने महर्षि नारद को उपदेश देते हुए कहा कि एकादशी महान पुण्य देने वाला व्रत है। श्रेष्ठ मुनियों को भी इसका अनुष्ठान करना चाहिए। एकादशी व्रत के दिन का निर्धारण जहाँ ज्योतिष गणना के अनुसार होता है, वहीं उनका नक्षत्र आगे-पीछे आने वाली अन्य तिथियों के साथ संबध व्रत का महत्व और बढ़ाता है।
जया एकादशी व्रत में क्या खा सकते हैं और क्या नहीं
- एक समय फलाहारी भोजन ही किया जाता है। व्रत करने वाले को किसी भी तरह का अनाज सामान्य नमक, लाल मिर्च और अन्य मसाले नहीं खाने चाहिए।
- कुटू और सिंघाड़े का आटा, रामदाना, खोए से बनी मिठाईयां, दूध-दही और फलों का प्रयोग इस व्रत में किया जाता है और दान भी इन्हीं वस्तुओं का किया जाता है।
- एकादशी का व्रत करने के बाद दूसरे दिन द्वादशी को भोजन योग्य आटा, दाल, नमक,घी आदि और कुछ धन रखकर सीधे के रूप में दान करने का विधान है।
जया एकादशी पौराणिक कथा
- एक बार नंदन वन में उत्सव के दौरान माल्यवान नाम का गंधर्व और पुष्यवती नाम की गंधर्व कन्या एक दूसरे पर मोहित हो गए।
- इससे देवराज इंद्र ने नाराज होकर स्वर्ग से निकालकर पिशाच जीवन जीने का श्राप दे दिया।
- वो दोनों हिमालय के पास पेड़ पर रहने लगे। इस दौरान गलती सेउन दोनों ने अनजाने में माघ मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को केवल एक बार ही फलाहार किया और ठंड के कारण दोनों रातभर जागते रहे। उन्हें रात भर अपनी भूल का पश्चाताप भी हुआ।
- इससे भगवान विष्णु ने प्रसन्न होकर उन्हें स्वर्ग प्रदान किया। इंद्र को आश्चर्य हुआ।
- इसके बाद से पिशाच जीवन से मुक्ति पाने के लिए ये व्रत किया जाने लगा।
एकादशी का फल
जया एकादशी व्रत करने वाले के पितृ, कुयोनि को त्याग कर स्वर्ग में चले जाते हैं। एकादशी व्रत करने वाले की पितृ पक्ष की दस पीढियां, मातृ पक्ष कीदस पीढियां और पत्नी पक्ष कीदस पीढियां भीबैकुण्ठ प्राप्त करती हैं। इस एकादशी व्रत के प्रभाव से पुत्र, धन और कीर्ति बढ़ती है।
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