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गार्डन हमेशा घर के उत्तर या पूर्वी दिशा में होना चाहिए। इसे सामान्य भाषा में कहा जाए तो ये दिशा गार्डन के लिए शुभ मानी गई है लेकिन इसके पीछे का सांटिफिक कारण ये है कि अगर गार्डन घर के पूर्व या दक्षिण भाग में होता है तो यहां पौधों के अधिक फलने की संभावना होती है। पूर्व दिशा में होने वाला गार्डन में पौधों पर सुबह की हल्की धूप पड़ती है, दोपहर तक सूर्य घर की पीछे की ओर आ जाता है। पौधों पर धूप कम पड़ती है। इससे पौधों के तेज धूप में जलने की आशंका नहीं होती।
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आमतौर पर लोग खूबसूरती के लिए वॉटर फाउंटेन गार्डन के बीच में ही लगाते हैं, जबकि यह पूर्व या उत्तर दिशा में होना चाहिए। इसका कारण है कि आमतौर पर हवा दो ही तरह की सबसे अधिक होती है पूर्वी हवा और उत्तरी हवा। इन दोनों दिशाओं से हवा का बहाव होने के कारण पौधों को उस वाटरफॉल के पानी की नमी हवा के जरिए मिल सकती है। वास्तु में पूर्व और उत्तर को देवताओं की दिशा और जल का स्थान माना जाता है। इस कारण भी यहां फाउंटेन या वाटरफॉल लगाने की सलाह दी जाती है। बहता पानी घर में सकारात्मक ऊर्जा लाता है।
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पौधों का चुनाव करते समय गार्डन के साइज का हमेशा ध्यान रखें। 2-3 फीट लंबे वाले पौधे ही लगाएं। ऐसा इस कारण कि छोटे पौधे जगह कम लेते हैं, साथ ही वे कभी घर में आने वाली हवा और रोशनी के लिए परेशानी नहीं बनेंगे। बड़े पौधों से घर में ताजी हवा और सूर्य की रोशनी दोनों आने में दिक्कत होगी। वास्तु में सूर्य की रोशनी और ताजी हवा को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। अगर घर का बगीचा बड़ा है तो किनारों पर कुछ बड़े पौधे लगाए जा सकते हैं।
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गार्डन में बच्चों का एंटटरटेनमेंट एरिया हमेशा उत्तर-पूर्वी दिशा में ही होना चाहिए। इस दिशा का सकारात्मक ऊर्जा और भगवान की दिशा मानी गई है। यहां बच्चे खेलते हैं तो उनका मानसिक विकास अन्य स्थानों की अपेक्षा ज्यादा होता है।
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आमतौर पर लोग गार्डन के डेकोरेशन के लिए गार्डन के बीचों-बीच स्टोन्स या स्टैच्यू लगाकार डेकोरेशन करते हैं। जबकि इस तरह का डेकोरेशन दक्षिण या पश्चिमी दिशा में होना चाहिए। इसका व्यवहारिक पक्ष यह भी है कि कोई भी डेकोरेटिव पीस बगीचे के बीच में होगा तो आप कभी उस गार्डन का पूरा उपयोग नहीं कर पाएंगे। साथ ही, उससे टकराने या चोट लगने की आशंका भी हमेशा रहेगी।
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