कोरोना से बचने देश में इम्यूनाइजेशन, वैक्सीनेशन की बात हो रही है। इसी बीच भारत सहित यूके, आस्ट्रेलिया की 6 यूनिवर्सिटी के 7 प्रोफेसर्स का चिल्ड्रन फुल इम्यूनाइजेशन पर एक चौंकाने वाला शोध सामने आया है। उसकी तीन महत्वपूर्ण बातें हैं। पहली, टीकाकरण के मामले में बिहार का हेल्थ मॉडल गुजरात से बेहतर है।
चिल्ड्रन फुल इम्यूनाइजेशन (सीएफआई) यानी बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले टीकाकरण में गुजरात अपने समकक्ष राज्यों में नीचे से दूसरे पायदान पर है। आर्थिक रूप से सक्षम गुजरात मॉडल में आधे बच्चों का यानी केवल 50 फीसदी का ही फुल इम्यूनाइजेशन हो पाता है, जबकि पिछड़े राज्यों में गिने जाने वाले बिहार में 62 फीसदी बच्चों का टीकाकरण होता है। दूसरी बात, इस दौरान देश का पूर्ण टीकाकरण प्रतिशत 44 से बढ़कर 62 हो गया। वहीं गुजरात 45 से 50% पर ही पहुंचा।
तीसरी और महत्वपूर्ण बात ये है कि स्वास्थ्य में पीपीपी मॉडल बुरी तरह फेल हुआ है और सरकारी मॉडल के बेहतर रिजल्ट आए हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न आस्ट्रेलिया के रिसर्चर और जेएनयू के प्रोफेसर श्रीनिवास गोली बताते हैं कि यहां निजीकरण के कारण सरकारी योजनाएं असफल हो रही हैं।
श्रीनिवास बताते हैं कि यूनिवर्सिटी के 7 प्रोफेसर्स ने नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे, हेल्थ इंफार्मेशन ऑफ इंडिया, हेल्थ इंफार्मेशन मैनेजमेंट सिस्टम, सभी राज्य सरकारों के डेटा आदि का अध्ययन करने पर देखा कि गुजरात को हेल्थ मॉडल फेल है। यहां निजीकरण के कारण सरकारी योजनाएं असफल हो रही हैं। हमारे सर्वे में सामने आया कि आर्थिक रूप से सक्षम और बड़ी जीडीपी वाले राज्यों में आर्थिक विषमता है।
गरीबों को मिलने वाली स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर नहीं हैं, जबकि आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों में सरकारी अस्पतालों की सुविधाएं बेहतर हो रही हैं और टीकाकरण जैसी बुनियादी जरूरतों पर सरकार खर्च कर रही है। आर्थिक रूप से सक्षम महाराष्ट्र, गुजराज जैसे राज्यों का मॉडल हर तबके को दी जाने वाली स्वास्थ्य व्यवस्थाओं में फेल है, जबकि सामाजिक रूप से सुदृढ़ केरल, बिहार का मॉडल बेहतर काम कर रहा है।
एससी(55%) और एसटी(51%)टीकाकरण का प्रतिशत बेहतर है। वहीं सामान्य जाति का (48%) है। ज्यादातर एससी, एसटी के लोग ग्रामीण क्षेत्रों मे रहते हैं और वहां टीकाकरण का ध्यान रखा जाता है। इस रिसर्च में केंद्र शासित सहित सभी राज्यों के 640 जिलों का भी डेटा देखा गया।
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