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(देबजीत चक्रबर्ती) देश की दिग्गज तेल कंपनियाें काे विचित्र समस्या का सामना करना पड़ रहा है। पेट्राेल की पर्याप्त उत्पादन क्षमता हाेने के बाद भी उन्हें पेट्राेल को दूसरे देशों से आयात करना पड़ रहा है।
दरअसल, देश की रिफाइनरियां पेट्रोल के मुकाबले अधिक मात्रा में डीजल बनाने के लिहाज से डिजाइन की गई हैं। रिफाइनरी इस तरह बनी हैं कि हर एक टन पेट्रोल के उत्पादन के लिए 2.5 टन डीजल का उत्पादन करना पड़ता है। फिलहाल पेट्राेल की मांग सामान्य स्तर पर है, जबकि डीजल की मांग 8 फीसदी कम है।
रिफाइनरियां डीजल का उत्पादन कम कर रही हैं, ताे इससे पेट्राेल का उत्पादन भी कम हाे जा रहा है, जबकि उसकी मांग अधिक है। ऐसे में तेल कंपनियां पेट्राेल आयात कर जरूरतें पूरी कर रही हैं। डीजल का सबसे अधिक इस्तेमाल पब्लिक ट्रांसपोर्ट और औद्योगिक गतिविधियों में होता है। कोरोना के चलते पब्लिक ट्रांसपोर्ट कम हो रहा है। औद्योगिक गतिविधियां धीमी रफ्तार से बढ़ रही हैं। सीजनल डिमांड कम और खुदरा कीमतें अधिक हैं। इसका परिणाम यह है कि देश में डीजल की मांग कम बनी हुई है।
बीपीसीएल के मार्केटिंग डायरेक्टर एके सिंह कहते हैं डीजल की मांग कम होने को देखते हुए हमें डीजल का उत्पादन घटना पड़ा है। इससे पेट्रोल के उत्पादन में भी कमी आई है। मजबूरी में हर महीने पेट्रोल आयात करना पड़ेगा। जब तक डीजल की मांग सामान्य स्तर पर नहीं पहुंचती हैं तब तक यह समस्या बनी रहेगी।
क्या है तेल कंपनियोंं की समस्या
भारतीय रिफाइनरियाें का प्राेडक्शन का गणित ऐसा है कि हर एक टन पेट्रोल बनाने के लिए 2.5 टन डीजल बनाना पड़ता है।देश में पेट्रोल की मांग सामान्य स्तर पर पहुंच गई है, जबकि डीजल की मांग अभी भी सामान्य से 8 फीसदी कम है।ऐसे में पेट्राेल का सामान्य उत्पादन करने पर अतिरिक्त डीजल बन जाएगा, जिसकी फिलहाल बाजार में मांग नहीं आ रही है।
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