देश में कोरोना संकट से निपटने के लिए योग्य डॉक्टर्स की कमी भी देखने को मिल रही है। वहीं कोरोना काल में सेवा देने को आतुर करीब 50 हजार डॉक्टर एफएमजीई नियमों की रोक के कारण सेवा नहीं दे पा रहे हैं। देश में हर रोज कोरोना वायरस के हजारों की संख्या में नए मरीज सामने आ रहे हैं। बढ़ते मरीजों की संख्या, छोटे शहरों और गांवों में चिकित्सीय सुविधाओं के घोर कमी के बीच डॉक्टर्स की भी भारी दिक्कत देखने को मिल रही है।
वहीं विदेशों के मेडिकल कॉलेजों से एमबीबीएस की डिग्री लेकर आए भारतीय डॉक्टर्स की भी फौज है। युवा, प्रतिभावान और ऊर्जा से भरे ये डॉक्टर्स अपनी सेवाएं देने को बेताब हैं लेकिन केंद्र सरकार के एक साल की अतिरिक्त इंटर्नशिप पूरी करने के बाद ही चिकित्सा कार्य करने देने के नियम की मजबूरी इनको रोक रही है। भारत में मौजूदा नियमों के मुताबिक किसी भी दूसरे देश के मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री लेकर वतन लौटे डॉक्टर को अपने यहां के किसी अस्पताल सह मेडिकल कॉलेज में साल भर इंटर्नशिप करनी होती है। फिर फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम (एफएमजीई) पास करना होता है। इसके बाद ही वो चिकित्सा कार्य कर सकता है। मास्को (रूस) से एमबीबीएस करके लौटे जोधपुर निवासी डॉ. रवि जोशी का कहना है कि एफएमजीई की परीक्षा न लेकर उनकी मेडिकल डिग्री या प्रोविजनल सर्टिफिकेट के आधार पर सीधी इंटर्नशिप ही करा दें ताकि डॉक्टर्स अपना काम भी करते रहें।
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