लखनऊ. जम्मू-श्रीनगर नेशनल हाईवे पर पुलवामा में आतंकियों ने आज ही के दिन फिदायीन हमला कर सीआरपीएफ के 40 जवानों को बम से उड़ा दिया था। कोई घर आने वाला था तो कोई छुट्टी बिताकर खट्ठीमीठी यादों संग अपने घर से विदा होकर सरहद की निगेहबानी के लिए पहुंचा ही था। कोई विवाह के बंधन में बंधने वाला था तो किसी की दुल्हन के हाथ की मेंहदी भी छूटी नहीं थी। शहीद जवानों के परिवारों का दुख देखकर पूरा देश रो पड़ा था।
पुलवामा हमले में सबसे अधिक दर्द उत्तर प्रदेश ने झेला था। 40 शहीद जवानों में 12 उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे। शहीदों के पार्थिव शरीर जब उनके पैतृक गांव लाए गए तो हजारों लोग हाथों में तिरंगा, जुबां पर भारत माता की जय व चेहरे पर शहादत पर गर्व के भाव के साथ अंतिम यात्रा में शामिल हुए। स्थानीय जनप्रतिनिधियों के अलावा कई मंत्री भी शहीदों के परिजनों के पास पहुंचे और उनसे तमाम वादे किए। इस आतंकी हमले के एक साल बीत चुके हैं, लेकिन तमाम वादे अभी भी अधूरे ही हैं। शहीद परिजनों के जख्म आज भी उन पलों को याद कर ताजा हो जाते हैं। पेश है ऐसे ही चार परिवारों की कहानी....
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प्रयागराज. यमुनापार के मेजा थाना क्षेत्र के टुडियार गांव निवासी राजकुमार यादव सूरत में टैक्सी चालते थे। उनके दो बेटों में बड़ा बेटा महेश यादव (26) वर्ष 2017 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) की 118 वीं बटालियन में भर्ती हुआ था। महेश सात दिन की छुट्टी पर घर आए थे और पुलवामा हमले के तीन दिन पहले ड्यूटी पर लौटे थे। जिस वक्त महेश की शहादत की खबर आई, उस वक्त उनके पिता राजकुमार यादव सूरत में अपनी टैक्सी चला रहे थे। पता चला तो बदहवास हालत में वह गांव पहुंचे। घर में पत्नी संजू यादव, मां शांति देवी और दोनों बेटों के अलावा छोटे भाई अमरीश यादव वीर जवान की शहादत को अश्रुपूरित विदाई दे रहे थे।
आज भी घरवालों के कानों में शहादत की खबर गूंजती रहती है। शहीद की पत्नी संजू यादव बताती हैं कि जब वह ड्यूटी पर जा रहे थे तो उन्होंने अपने दोनों बेटों समर और साहिल को गले से लगाया था और जाते समय कहा था बोलो बेटा भारत माता की जय। यह बच्चे एक साल और बड़े हो गए हैं लेकिन इन्हें आज भी अपने सैनिक पिता की यादें बहुत रुलाती है।
संजू यादव कहती हैं कि मुझे सरकार से कुछ नहीं चाहिए। सरकार मेरे पति को वापस कर दे। मेरे बच्चे आज भी अपने पापा का इंतजार कर रहे हैं। रोज पूछते हैं कि आखिर मां बताओ पापा कब आएंगे। सरकार आकर मेरे बच्चों को उनके पापा और मेरे पति को लौटा दे। पति के चले जाने के बाद से मेरी और मेरे सास की तबीयत खराब रहती है, लेकिन किसी ने हमारी सुधि आज तक नहीं ली है। साल भर बीतने को है संजू देवी ने बताया कि समर और साहिल गुनाई स्थित महर्षि अरविंद विद्यालय निकेतन में पढ़ते हैं। देवर अमरीश नौकरी के लिए इधर उधर भटक रहा है। ननद संजना बीए प्रथम वर्ष में पढ़ रही है।
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वाराणसी. पुलवामा हमले में आज के ही दिन काशी के तोफापुर गांव निवासी सीआरपीएफ जवान रमेश यादव शहीद हो गए थे। एक साल भी परिवार का दर्द ताजा है। बेटे आयुष को नहीं मालूम कि उसके पिता एक ऐसी यात्रा पर जा चुके हैं, जहां से कोई वापस नहीं आता है। वह हर दिन अपने पिता को याद करता है तो आंखों के आंसूओं को छुपाकर परिजन ढांढस बंधाते हैं कि, पापा ड्यूटी पर हैं।
परिवार वालो का कहना है कि कुछ वादों को सरकार ने पूरा किया और कुछ को भूल गयी। शहीद के पिता श्याम नारायण ने बताया कि यूपी सरकार के मंत्रियों ने बेटी की शहादत खूब फोटो खिंचवाया। बाद में फोन ही उठाना बन्द कर दिया है। मंत्री अनिल राजभर ने गिरवी रखी जमीन को छुड़वाने का भरोसा दिलाया था। जिसे बाद में आर्थिक राशि मिलने के बाद 2 लाख 15 हजार चुकाकर खुद छुड़वाया।
पत्नी रीनू यादव ने बताया सरकार ने आर्थिक मदद और मुझे सरकारी नौकरी दी है। लेकिन पति के नाम से स्मारक, जमीन, खेल ग्राउंड, गांव का मुख्य गेट आज तक नहीं मिला और न बना।
मां राजमती देवी ने बताया कि बेटे की कमी कोई पूरा नही कर सकता। 25 लाख सरकार ने दिया है। लेकिन घर देने का वादा आज तक पूरा नही हुआ। पुलवामा हमले के ठीक दो दिन पहले 12 फरवरी को रमेश घर से जम्मू ड्यूटी पर वापस गए थे। घर से जाते वक्त रमेश ने बोला था कि, जल्द ड्यूटी से वापस आकर घर बनवाऊंगा। घर बनवाने का सपना अधूरा रह गया। उन्होंने कहा कि, प्रियंका गांधी भी घर आई थीं। लेकिन उसके बाद किसी ने भी मुड़कर हमारी सुधि नहीं ली है। -
उन्नाव. यहां के रहने वाले सीआरपीएफ जवान अजीत कुमार पुलवामा हमले में शहीद हुए थे। उनकी 21वीं बटालियन में तैनाती थी। शहीद अजीत की याद में एक-एक दिन गुजारने वाले इस परिवार के जख्म आज भी ताजा हैं। बच्चों के सिर से पिता का साया उठा था तो पत्नी मीना की मांग का सिंदूर उजड़ गया था। लेकिन जब तिरंगे में लिपटा पार्थिव शरीर गांव लाया गया तो परिजनों का सीना फख्र से तन गया था। कानून मंत्री बृजेश पाठक समेत कई मंत्री व विधायक शहीद के घर पहुंचकर तमाम आश्वासन दिया था। लेकिन अभी भी उन वादों को पूरा होने का इंतजार है।
शहीद के पिता प्यारेलाल गौतम ने कहा कि, सरकार की ओर से जमीन, गैस एजेंसी, शहीद के नाम से स्कूल देने का वादा किया गया था, लेकिन आज भी ये अधूरे हैं। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा था कि, बच्चों की शिक्षा हम दिलाएंगे, बाहर एडमिशन करवाएंगे। उस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। पुलवामा हमले की ठीक तरह से जांच भी नहीं हुई। जिनका हाथ था, वो कौन लोग थे, इसकी कोई जानकारी नहीं मिली।
पत्नी मीना ने कहा- नौकरी मिल गई है। लेकिन अभी तक स्मारक पर सरकार ने पति की मूर्ति भी नहीं लगाई, अपनी तरफ से बनवा दी गई है। जिस जगह पति का अंतिम संस्कार हुआ था, उस घाट को शहीद के नाम पर कर दिया जाए। किसी इंटर कॉलेज का नाम शहीद के नाम रख दिया जाए, ताकि उनका नाम चल सके। पीडब्ल्यूडी से फोन आया था कि मकान बना कर देंगे, कहीं कुछ नहीं होता है। -
आगरा. जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में बीते साल 14 फरवरी को सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमले में 40 जवान शहीद हुए थे। उनमें आगरा के रहने वाले कौशल कुमार रावत भी शामिल थे। शहादत के बाद जिला प्रशासन, जनप्रतिनिधियों व समाजसेवियों ने परिवार को हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया था। इस बात को एक साल बीत गए, लेकिन सभी आश्वासन खोखले साबित हुए हैं। परिवार ने कहा- उन्हें शहीद स्मारक बनवाने के लिए अपनी जमीन देनी पड़ी है।
मां सुधा रावत ने कहा- केंद्र व राज्य सरकार से परिवार को राहत नहीं मिली है। कोई भी मदद करने के लिए नहीं आया है। मैं बूढ़ी हूं, लेकिन डीएम ने मेरी भी बात नहीं सुनी। जांच भी सही तरीके से नहीं की गई। दिवाली पर कुछ लोग आए थे, जो मिठाई देने आए थे। बेटे के गम में कौशल के पिता की भी 11 जनवरी को मौत हो गई। उन्होंने कहा- जनप्रतिनिधियों व डीएम ने आश्वासन दिया था कि, जीवन व्यतीत करने व शहीद स्मारक के लिए जमीन दी जाएगी। सड़क का नाम शहीद के नाम पर होगा। लेकिन 25 लाख की आर्थिक सहायता के अलावा कोई डिमांड पूरी नहीं हुई है।
शहीद के चाचा सत्यप्रकाश रावत ने कहा- एक साल से शहीद की पत्नी जिलाधिकारी कार्यालय के चक्कर काटते काटते थक गई। लेकिन जमीन नहीं मिली। हमनें खुद अपनी जमीन दी है, जिस पर ग्राम पंचायत विभाग द्वारा स्मारक बनवाया जा रहा है।
गुरुग्राम में रहते हैं पत्नी व बेटा
आगरा के कहरई गांव निवासी कौशल किशोर रावत (48) सीआरपीएफ में नायक के पद पर तैनात थे। पुलवामा हमले के वक्त उनकी तैनाती कश्मीर में 76वीं बटालियन में थी। वर्तमान में उनका बेटा व पत्नी गुड़गांव के गुरुग्राम में रहती हैं। जबकि, मां सुधा रावत व अन्य परिजन गांव में रहते हैं।
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