Tuesday, February 18, 2020

एक गांव जहां आज भी प्रतिबंधित है लहसुन-प्याज और मदिरा का सेवन; बाबा फकीरादास की समाधि पर लगता है बड़ा मेला

सहारनपुर. उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक औरविश्व प्रसिद्ध नगर देवबंद से 8 किलोमीटर दूर काली नदी के तट पर स्थित मिरगपुर गांव देश के नक्शे पर एक ऐसा अनूठा गांव है, जो अपने विशेष रहन-सहन और सात्विक खान-पान के लिए विख्यात है। आज जहां हर कोई मदिरा का सेवन करता है औरभोजन का स्वाद बढ़ाने के लिए लहसुन-प्याज का प्रयोग करता है, वहीं इस गांव में आज भी यह पूरी तरह से प्रतिबंधित हैं। यह गांवगुर्जर बाहुल्य माना जाता है।

मंगलवार को इस गांव में बाबा फकीरादास की स्मृति में भी भव्य मेले का आयोजन किया गया। इस मेले में जहां वेस्ट यूपी के लोग भाग ले रहे हैं, वहीं हरियाणा और उत्तराखंड से भी लोग पहुंच रहे हैं। सुबह 7 बजे से शुरूहुए मेले में पहुंचे श्रद्धालुओं ने बाबा फकीरादास की सिद्धकुटी पर मत्था टेका और मन्नत मांगी। गांव में आए श्रद्धालुओं के लिए ग्रामीणों द्वारा जहां ठहरने और भोजन की विशेष व्यवस्था की गई है। यहां हर घर से हलवा और पेड़े का प्रसाद वितरित किया जा रहा है।

सहारनपुर जनपद की तहसील देवबंद में रुड़की मार्ग पर बसा यह यह विशिष्ट गांव खुद में देशज संस्कृति के साथ साथ अनेकों खुबियां समेटे हुए हैं। गांव में 90 प्रतिशत आाबादी हिंदुओं की है। यहां के निवासियों की बड़ी खूबी यह है कि ये सभी पूरी तरह से नशे और तामसिक खानपान से मुक्त है। इस गांव में रहने वाले व्यक्ति भोजन में मांस, प्याज, लहसुन तक का प्रयोग नहीं करते हैं। ये शराब, पान, बीड़ी, सिगरेट, सिगार, हुक्का, गुटखा, गांजा, अफीम एवं भांग आदि मादक पदार्थों का सेवन करने से बचते हैं।

ध्रूमपान और मांसाहार का सेवन नहीं करने की शर्त पर फकीरादास ने शिष्यों को रिहा करवाया था
ऐसा कहा जाता है कि मुगल सम्राट नुरुद्दीन मोहम्मद जहांगीर, जो अकबर के बडे़ बेटे और उत्तराधिकारी थे, के शासनकाल में बाबा फकीरादास ने अपने शिष्यों को जेल से इसी शर्त पर रिहा कराया था कि वे कभी भी ध्रूमपान और मांसाहार का सेवन नहीं करेंगे। तब पूरे गांव ने श्रद्धापूर्वक बाबा की शर्त को स्वीकार करते हुए जो प्रतिज्ञा ली थी, आज भी गांववासी उसका पालन कर रहे हैं।

यहां के ग्रामीणों के मुताबिक मुगल सम्राट जहांगीर के शासनकाल वर्ष 1610 में इस अनूठी परंपरा की नींव पड़ी थी, जब बाबा फकीरादास यहां आकर रुके थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत राजेश पायलट को इस गांव से बहुत ही लगाव था। उन्होंने गांव में पुल बनवाकर लोगों को बड़ी राहत प्रदान की। स्व. राजेश पायलट की याद में गांव में प्रवेश द्वार पर उनकी प्रतिमा भी लगाई गई है। ग्रामीणों को राजेश पायलट के प्रयासों और प्रेरणा से ही काली नदी पर पुल बनाए जाने का काम हुआ था। उससे गांव को बहुत फायदा भी हुआ और उसके बाद गांव मुख्य सड़कों से जुड़ गया।

बाबा फकीरा दास पर बनी डॉक्यूमेंट्री भी दूरदर्शन पर प्रसारित हुई थी
गांव के ही रहने वाले चौधरी वीरेंद्र सिंह ने 1990 में 30 मिनट की बाबा फकीरादास पर एक डेक्यूमेंट्री भी तैयार की थी, जो दूरदर्शन पर प्रसारित हुई थी, उन्होंने बताया कि मिरगपुर की खास खूबी यह भी है कि गांव में कोई भी व्यक्ति दूध नहीं बेचता है। यह इस गांव की समृद्धि का प्रतीक भी है और यहां के बच्चे तंदरुस्त और तगडे भी हैं। वह बताते हैं कि बाबा फकीरादास उपदेश देकर चले गए, लेकिन गांव के लोग आज भी उनके उपदेशों का सख्ती से पालन करते हैं। गांव का कोई भी व्यक्ति बाबा की हिदायतों का उल्लंघन नहीं करता है। इस मामले में पूरे गांव की एकजुटता एक मिसाल है।



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देवबंद के मिरगपुर गांव में फकीरादास की मजार पर मंगलवार को लगा मेला।


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