वाराणसी. नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ हुई पुलिस कार्रवाई के विरोध और आम मुद्दों को लेकर 2 फरवरी को गोरखपुर के चौरीचौरा से पदयात्रा पर निकले 10 सत्याग्रहियों को गाजीपुर पुलिस ने 11 फरवरी को गिरफ्तार कर लिया था। जेल में पांच रातें गुजारने के बाद सभी कोएक-एक लाख के निजी मुचलके भरवाने के बाद रविवार शाम रिहा किया गया। जेल से रिहाई के बाद पुलिस ने वाराणसी तक इन सभी को सुरक्षा के बीच पहुंचाया।
इन सत्याग्रहियों की गिरफ्तारी के पीछे पुलिस का तर्क था कि, बिना अनुमति ये लोग जिले में पदयात्रा निकाल रहे थे, जबकि यहां धारा 144 प्रभावी है। पुलिस ने इनके पास से कुछ पर्चे बरामद किए थे। जिसका शीर्षक 'आओ हमारे साथ चलो' है। उसमें लिखा है कि, हमारा सत्याग्रह अपने अंदर के डर, झूठ और हिसा के खिलाफ है। साथ ही हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश में सीएए व एनआरसी आंदोलन में आम आदमी पर हुए बर्बर जुल्म व दमन के खिलाफ भी है। ये यात्रा दिल्ली के राजघाट तक जाएगी। दैनिक भास्कर संवादादाता अमित मुखर्जी ने दो सत्याग्रहियों से बात की।
गिरफ्तारी का कारण नहीं बताया तो शुरू किया अनशन
भास्कर: कितने साथियों ने शुरू की थी पदयात्रा, जेल से निकलने पर कैसा रहा अनुभव?
शेष नारायण:नागरिक सत्याग्रह यात्रा छह साथियों ने मिलकर शुरू किया था। आज हम दस हैं। 11 तारीख को हमें पुलिस ने गिरफ्तार किया। रिहाई की अगली सुबह यात्रा से पहले पुलिस ने हमें फिर से अभिरक्षा में ले लिया। पुलिस की 10 गाड़ियां साथ थीं। जबरन हमें गाड़ी में बैठाकर बीएचयू लाकर छोड़ा। सुबह हमें फ्रेश तक नहीं होने दिया गया।
भास्कर: जेल का क्या अनुभव रहा?
शेष नारायण:जेल को रिफॉर्म करने की आवश्यकता है। हमें गिरफ्तारी का कारण नहीं बताया गया तो दूसरे दिन हम लोगों ने अनशन शुरू कर दिया। जेलर ने 1898 का जेल मैनुअल दिखा कर बोला कि, आप लोग पानी, चाय, कुछ खाएंगे नहीं तो एक साल की सजा हो जाएगी। तीसरे दिन मुलाकातियों को आने दिया गया।
भास्कर: जेल में समय कैसे बीतता था?
शेष नारायण:जेल में दो दिनों तक हमें मांगने पर भी किताब नहीं दिया गया। बाद में केवल मुंशी प्रेमचन्दका कुछ साहित्य दिया गया। गांधी और नेहरू से जुड़ी किताबों को हम सभी ने पढ़ा। पॉलिटिकल बंदी बनाकर रखा गया था।
मामला सुर्खियों में आया तो साथ आए विपक्षी दल, पहले कोई नहीं आया
भास्कर: किस बैरक में रखे गए और रुटीन क्या था?
प्रियेश पांडेय: बैरक नम्बर 10 में रखा गया था। तीन दिन तक यह नहीं बताया गया कि हमारा जुर्म क्या है? किन धाराओं में एफआईआर लिखी गई है। 300 लोगों के जेल में 900 लोग रहते हैं। खाने, पीने, रहने की बहुत परेशानी वहां थी। गंदगी का और हाइजीन का घर है। हम लोग दिन में छोटे से ग्राउंड में ही बातचीत करते दिन काटते थे।
भास्कर: कितने दिन बाद कापी पेन मिला?
प्रियेश पांडेय: तीसरे दिन हमें मुंशी जी की किताब दी गई। तीसरे दिन बहुत मांगने पर कुछ पन्ने और पेन कुछ लोगों को मिला।
भास्कर: आपकी यात्रा को सपा, बसपा और कांग्रेस का सपोर्ट है?
प्रियेश पांडेय: मीडिया में हाईलाइट होने के बाद ये लोग आए। गिरफ्तारी के पहले कोई नहीं आया।
भास्कर: यात्रा का मकसद क्या है?
प्रियेश पांडेय: डर और हिंसा को हराना है। हमारा लक्ष्य ग्रामीण जीवन की समस्या, कृषि, रोजगार, शिक्षा है।
भास्कर: आपका विरोध किसलिए है?
प्रियेश पांडेय: हमारा विरोध डर व हिंसा के खिलाफ है। सीएए व एनआरसी का भी हम विरोध करते हैं। यात्रा जारी रहेगी।
पदयात्रा में ये शामिल
भागलपुर विश्वविद्यालय के प्रवक्ता रविंद्र कुमार रवि, आगरा की महिला पत्रकार प्रदीपिका सारस्वत, मध्य प्रदेश के कार्यकर्ता मनीष शर्मा, इलाहाबाद विश्वविदयालय के छात्र शेष नरायन ओझा, दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र नेता अतुल यादव, बीएचयू के छात्र प्रियेश पांडेय, आजमगढ़ के नीरज राय, रायबरेली के अनन्त शुक्ला, पटना के राज अभिषेक, मुजफ्फरपुर के मुरारी कुमार पदयात्रा में शामिल हैं।
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