लखनऊ (आदित्य तिवारी). उत्तर प्रदेश में सोमवार को योगी सरकार ने लखनऊ व गौतमबुद्धनगर में पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू कर दिया है। देश के 15 राज्यों के 71 शहरों में ये सिस्टम लागू है। उत्तर प्रदेश में पहली बार यह सिस्टम लागू हुआ है। इससे अब पुलिस कमिश्नर के पास मैजिस्ट्रेटियल पॉवर होगी। इसके बाद जनता के मन में एक सवाल उठने लगा है कि, इससे उन्हें राहत कैसे मिलेगी? पूर्व डीजीपी एके जैन ने कहा- कमिश्नर प्रणाली लागू करना बड़ी बात नहीं, इसका सफल होना बड़ी बात है। कमिश्नर के पास राजस्व के मामलों को छोड़कर कानून-व्यवस्था के सभी अधिकार पुलिस के पास रहेंगे।
पुलिस और जवाबदेह होगी
पूर्व डीजीपी एके जैन ने कहा- पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने से पुलिस पर जवाबदेही तय होगी। उन्होंने तर्क दिया कि, गुंडे जेल में होंगे। पुलिस की कोर्ट से इन्हें जमानत नहीं मिलेगी। ट्रैफिक में बाधा बनने वाले अतिक्रमण या सड़क के अवैध कब्जे पुलिस के आदेश पर हटाने ही होंगे। ट्रैफिक नियमों का पालन सख्ती से करवाया जाएगा, क्योंकि बार-बार ट्रैफिक नियम तोड़ने पर पुलिस ही ड्राइविंग लाइसेंस सस्पेंड कर सकेगी। लाठी चार्ज या आंसू गैस के गोले छोड़ने का फैसला पुलिस अपने ही स्तर पर लेगी। मतलब है कि शहर की कानून व्यवस्था के लिए अब सीधे तौर पर पुलिस ही जवाबदेह होगी।
ये रहेगा लाभ
पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने कहा- अभी तक ज्यादातर लॉ एंड आर्डर के मामले इसलिए उग्र हो जाते हैं, क्योंकि पुलिस के पास तत्काल निर्णय लेने के अधिकार नहीं होते। कमिश्नर प्रणाली में पुलिस प्रतिबंधात्मक कार्रवाई के लिए खुद ही मजिस्ट्रेट की भूमिका में होगी। प्रतिबंधात्मक कार्रवाई का अधिकार पुलिस को मिलेगा तो आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों पर जल्दी कार्रवाई हो सकेगी। जैसे गुंडा एक्ट, शस्त्र लाइसेंस, धारा 144 लागू करना, धरने के लिए अनुमति देने, लाठीचार्ज करने का फैसला, जिला बदर की कार्रवाई जैसे वो सभी अधिकार कमिश्नर प्रणाली में जो मजिस्ट्रेट के पास रहती थी। अब राजस्व सम्बंधित और डेवलपमेंट के ही अधिकार ही जिला प्रशासन के डीएम-मजिस्ट्रेट के पास ही रहेंगे।
गुंडों को जमानत देने का फैसला अब पुलिस लेगी
पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह ने कहा- एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के अधिकार मिलेंगे। जाहिर है रुतबा भी बढ़ेगा। गुंडों को जमानत देने या नहीं देने का फैसला पुलिस खुद लेगी। पुलिस अधिकारी लॉ एंड आर्डर के मामले में खुद निर्णय लेंगे। कहा कि, अक्सर देखा जाता हैं कि ज्यादातर मामला पेंडिंग रहते हैं। जिला बदर के प्रस्ताव कलेक्टर जानबूझकर नहीं अटकाते, लेकिन पुलिस अक्सर तर्क देती है कि जिला बदर और अन्य प्रतिबंधात्मक कार्रवाइयों के प्रस्ताव कलेक्टर कोर्ट में लंबे समय तक पेंडिंग रहते हैं। अब निर्णय पुलिस लेगी। कब धारा 144 लागू करनी कब नहीं यह सभी अधिकार मिल गए हैं।
10 लाख से ज्यादा जनसंख्या वाले शहर में होती हैं लागू
पूर्व डीजीपी प्रकाश का कहना हैं कि, कमिश्नर प्रणाली 10 लाख से ज्यादा की जनसंख्या वाले शहर में ही लागू हो सकती हैं। कमिश्नर प्रणाली एक पारदर्शी प्रणाली हैं। अगर किसी भी सिस्टम के पास अधिकार होते तब वह सही निर्णय ले सकता हैं और उसकी जिम्मेदारी भी तय की जा सकती है।
यह मिलेंगे अधिकार-
होटल के लाइसेंस, बार के लाइसेंस, हथियार के लाइसेंस देने का अधिकार भी पुलिस के पास आ जाएगा। धरना प्रदर्शन की अनुमति देना ना देना पुलिस तय करेगी। दंगे के दौरान लाठी चार्ज होगा या नहीं, कितना बल प्रयोग होगा यह भी पुलिस तय करेगी। जमीन की पैमाइश से लेकर जमीन संबंधी विवादों के निस्तारण में भी पुलिस को अधिकार मिलेगा। पुलिस सीधे लेखपाल को पैमाइश करने का आदेश देगी। हत्या मारपीट आगजनी बलवा जैसे तमाम घटनाएं जमीनी विवाद से शुरू होती हैं। कमिश्नर प्रणाली लागू होने से पुलिस ऐसे विवादों का जल्द निस्तारण कर सकेगी।
आम आदमी के सवाल?
कहीं पुलिस निरंकुश तो नहीं हो जाएगी। आम आदमी को परेशान तो नहीं करेगी।
ड्राइविंग लाइसेंस रद्द करने के अधिकार का दुरुपयोग तो नहीं होगा। चैकिंग के नाम पर मनमानी तो नहीं होगी।
सड़क पर अवैध कब्जे के नाम पर फेरीवालों और गुमठी वालों को परेशान तो नहीं करेगी।
सिस्टम बदलने से महिलाओं की सुरक्षा कैसे पुख्ता होगी, इसका भी सीधा जवाब ड्राफ्ट में नहीं है।
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