जीवन मंत्र डेस्क. महाभारत में कौरव और पांडवों के बीच युद्ध चल रहा था। कर्ण ने भीम के पुत्र घटोत्कच का वध कर दिया था। जब घटोत्कच का वध हुआ तो सभी पांडव दुखी थे, लेकिन अर्जुन ने देखा कि श्रीकृष्ण प्रसन्न हैं। अर्जुन ने जब इस प्रसन्नता का कारण पूछा तो श्रीकृष्ण ने कहा कि अगर आज कर्ण के हाथों घटोत्कच की मृत्यु नहीं होती तो भविष्य में इसका वध मेरे हाथों होता।
ये है घटोत्कच से जुड़ा प्रसंग
- श्रीकृष्ण के कहने पर भीम पुत्र घटोत्कच कर्ण से युद्ध करने गया था। घटोत्कच और कर्ण दोनों ही पराक्रमी योद्धा थे, इसलिए वे एक-दूसरे के प्रहारों को अपनी शक्तियों से काटने लगे। जब कर्ण ने देखा कि घटोत्कच को किसी प्रकार पराजित नहीं किया जा सकता है तो उसने अपने दिव्यास्त्र प्रकट किए।
- यह देख घटोत्कच ने भी अपनी माया से राक्षसी सेना प्रकट कर दी। कर्ण ने अपने शस्त्रों से उसका भी अंत कर दिया। इधर घटोत्कच कौरवों की सेना का भी संहार करने लगा। घटोत्कच के हाथों अपनी सेना का संहार देखकर सभी कौरवों ने कर्ण से कहा कि तुम इंद्र की दी हुई शक्ति से अभी इस राक्षस का अंत कर दो, नहीं तो ये आज ही कौरव सेना को समाप्त कर देगा। सभी की बात मानकर कर्ण ने ऐसा ही किया और घटोत्कच का वध कर दिया।
- घटोत्कच के वध से पांडव दुखी थे, लेकिन अर्जुन ने श्रीकृष्ण को इस अवसर पर प्रसन्न देखा। उसने श्रीकृष्ण से पूछा कि वे घटोत्कच की मृत्यु पर आप प्रसन्न क्यों दिख रहे हैं? श्रीकृष्ण ने कहा कि कर्ण के पास इंद्र के द्वारा दी गई दिव्य शक्ति थी, उस शक्ति को कोई भी पराजित नहीं कर सकता था। कर्ण ने वह शक्ति तुम्हारे लिए संभालकर रखी थी, लेकिन अब वह शक्ति अब उसके पास नहीं है। ऐसी स्थिति में तुम्हें उससे कोई खतरा नहीं है। अगर आज कर्ण घटोत्चक का वध नहीं करता तो एक दिन मुझे ही इसका वध करना पड़ता, क्योंकि वह ब्राह्मणों और यज्ञों से शत्रुता रखने वाला राक्षस था। तुम लोगों का प्रिय होने की वजह से ही मैंने अब तक इसका वध नहीं किया था।
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