Saturday, March 14, 2020

शीतला माता का स्वरूप : देवी मां करती हैं गधे की सवारी और पहनती हैं नीम के पत्तों की माला

जीवन मंत्र डेस्क.चैत्र मास के कृष्णपक्ष की सप्तमी और अष्टमी को ठंडा खाने की परंपरा है। इन तिथियों को शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी कहा जाता है।इन दिनों में शीतला माता की पूजा की जाती है।कुछ क्षेत्रों में सप्तमी और कुछ क्षेत्रों में अष्टमी पर ये पर्व मनाया जाता है। इस साल इन तिथियों की तारीख के संबंध में पंचांग भेद हैं। कुछ पंचांग में 15 और 16 मार्च को सप्तमी और अष्टमी बताई गई है। जबकि कुछ पंचांग में 16 और 17 मार्च को सप्तमी और अष्टमी बताई गई है।उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार जानिए शीतला माता से जुड़ी खास बातें और शीतला सप्तमी और अष्टमी पर ठंडा भोजन क्यों करना चाहिए...

गधे की सवारी करती हैं शीतला माता

पं. शर्मा के अनुसार शीतला माता गधे की सवारी करती हैं, उनके हाथों में कलश, झाड़ू, सूप (सूपड़ा) रहते हैं और वे नीम के पत्तों की माला धारण किए रहती हैं। शीतला माता को ठंडे खाने का भोग लगाना चाहिए।

ऋतुओं के संधिकाल में आता है ये पर्व

शीतला सप्तमी और अष्टमी सर्दी और गर्मी के संधिकाल में आता है। अभी शीत ऋतु के जाने का और ग्रीष्म ऋतु के आने का समय है। पं. शर्मा के मुताबिक दो ऋतुओं के संधिकाल में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। संधिकाल में आवश्यक सावधानी रखी जाती है तो कई मौसमी बीमारियों से बचाव हो जाता है। इस समय में खान-पान में की गई लापरवाही स्वास्थ्य के लिए नुकसानदायक है।

इन दिनों में ठंडा खाने से क्या लाभ होता है

इन दो दिनों में शीतला माता के लिए व्रत रखा जाता है। ये व्रत का पालन करने वाले लोग इन दिनों में बासी यानी ठंडा खाना ही खाते हैं। सप्तमी या अष्टमी पर ठंडा खाना खाने से उन्हें ठंड के प्रकोप से होने वाली कफ संबंधी बीमारियां होने की संभावनाएं काफी कम हो जाती हैं।

वर्ष में एक दिन सर्दी और गर्मी के संधिकाल में ठंडा भोजन करने से पेट और पाचन तंत्र को भी लाभ मिलता है। कई लोग को ठंड के कारण बुखार, फोड़े-फूंसी, आंखों से संबंधित परेशानियां आदि होने की संभावनाएं रहती हैं, उन्हें हर साल शीतला सप्तमी या अष्टमी पर बासी भोजन करना चाहिए। शीतला माता की पूजा करने वाले लोगों इन तिथियों पर गर्म खाना खाने से बचना चाहिए।



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