Thursday, February 13, 2020

सत्संग में सही रास्ता बताया जाता है, उस रास्ते पर चलने या न चलने का निर्णय हमारा रहता है

जीवन मंत्र डेस्क. गौतम बुद्ध रोज अपने शिष्यों और भक्तों को उपदेश दिया करते थे। वे अपने उपदेशों में जीवन में सुख-शांति बनाए रखने के सूत्र बताते थे, लेकिन इन उपदेशों का लाभ कुछ ही लोगों को मिल पाता था। एक दिन उनके एक शिष्य ने पूछा कि तथागत क्या आपके सत्संग सुनने वाले सभी लोगों का कल्याण होता है? बुद्ध ने कहा कि कुछ का होता है और कुछ का नहीं होता है।
शिष्य ने पूछा कि आपके उपदेशों के बाद भी सभी लोगों को शांति क्यों नहीं मिल पाती है? बुद्ध ने इस सवाल के जवाब में एक सवाल पूछा कि अगर कोई व्यक्ति तुमसे राजमहल जाने का रास्ता पूछे और तुम्हारे रास्ता बताने के बाद भी वह भटक जाए तो तुम क्या करोगे?
शिष्य ने कहा कि तथागत मेरा काम सिर्फ उसे रास्ता बताने का है, अगर वह फिर भी रास्ता भटक जाता है तो मैं क्या कर सकता हूं।
बुद्ध ने कहा कि भाई ठीक इसी तरह मेरा काम लोगों का मार्गदर्शन करने का है। मैं लोगों को सिर्फ सही-गलत का भेद बता सकता हूं। मैं जो सूत्र बताता हूं, उन्हें जीवन में उतारना है या नहीं उतारना है, ये निर्णय लोगों को ही करना होता है। जो लोग ये सूत्र जीवन में उतार लेते हैं, उनका कल्याण हो जाता है, उनके जीवन में सुख-शांति आ जाती है। जो लोग इन बातों को नहीं अपनाते हैं, वे हमेशा दुखी रहते हैं और भटकते रहते हैं।
कथा की सीख
इस प्रसंग की सीख यह है कि सत्संग में सिर्फ सही रास्ता बताया जाता है, इन रास्तों पर चलने का काम श्रद्धालुओं को ही करना होता है। जो लोग सत्संग की अच्छी बातों का महत्व समझते हैं, वे इन बातों का पालन करते हैं और सभी बाधाओं को दूर कर पाते हैं।



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