Thursday, February 13, 2020

भगवान और भक्त के आपसी समर्पण का प्रतीक पर्व है शबरी जयंती

जीवन मंत्र डेस्क. फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को शबरी जयंती मनाई जाती है। जो कि इस बार 15 फरवरी, शनिवारको पड़ रही है।श्रीराम के प्रति श्रद्धा और भक्ति के कारणशबरी को मोक्ष प्राप्ति हुई थी। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान राम ने इनके झूठे बेर खाए थे। इसलिए भगवान और भक्त के आपसी समर्पण के प्रतीक पर्व के रूप में शबरी जयंती मनाई जाती है।

कौन थी शबरी माता

माता शबरी का वास्तविक नाम श्रमणा था और वह भील समुदाय की शबरी जाति से संबंध रखती थीं। उनके पिता भीलों के राजा थे। शबरी जब विवाह के योग्य हुई तो उसके पिता ने भील कुमार से उसका विवाह तय किया। उस समय विवाह में जानवरों की बलि देने का नियम था। लेकिन शबरी ने जानवरों को बचाने के लिए विवाह नहीं किया।

पिता को नहीं देने दी भेड़- बकरियों की बलि

  1. शबरी एक आदिवासी भील की पुत्री थी। इनके पिता शबरी के विवाह के एक दिन पूर्व सौ भेड़ बकरियां लेकर आए।
  2. शबरी को जब पता चला तो वह वह इन पशुओं को बचाने की जुगत लगाने लगी।
  3. शबरी के मन में ख्याल आया और वह सुबह होने से पूर्व ही घर से भागकर जंगल चली गई, जिससे वो उन निर्दोष जानवरों को बचा सके।
  4. शबरी को भली भांति पता था कि एक बार इस प्रकार जाने के बाद वह कभी अपने घर वापसी नहीं कर पाएगी लेकिन उसने पहले उन भेड़-बकरियों के बारे में सोचा।

शबरी माला देवी की होती है पूजा

शबरीमाला मंदिर में इस दिन खास मेला लगता है एवं पूजा-अर्चना होती है। शबरी को देवी का स्थान प्राप्त हुआ एवं साथ ही मोक्ष की प्राप्ति भी हुई। शबरी जंयती के दिन शबरी को देवी स्वरूप में पूजा जाता है, यह जयंती श्रद्धा एवं भक्ति द्वारा मोक्ष प्राप्ति का प्रतीक है। ऐसी मान्यता है कि शबरी माला देवी की पूजा करने से वैसे ही भक्ति भाव की कृपा मिलती है जैसे शबरी ने भगवान राम से प्राप्त की थी।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
Shabri Jayanti is a symbol of mutual devotion of God and devotee


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/31UEpie

SHARE THIS

Facebook Comment

0 comments: