Saturday, February 1, 2020

भीष्म अष्टमी 2 फरवरी को, देह त्यागने के लिए पितामह भीष्म ने चुनी थी ये तिथि

जीवन मंत्र डेस्क. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार माघ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भीष्म अष्टमी व्रत किया जाता है। इस तिथि पर व्रत करने का विशेष महत्व है। यह बार यह व्रत 2 फरवरी, रविवार को है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, इस दिन भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने प्राण त्यागे थे। उनकी स्मृति में यह व्रत किया जाता है। इस दिन प्रत्येक हिंदू को भीष्म पितामह के निमित्त कुश, तिल व जल लेकर तर्पण करना चाहिए। सुंदर और गुणवान संतान के लिए ये व्रत किया जाता है।

भीष्म अष्टमी का महत्व

1. पितामह भीष्म ने ब्रह्मचर्य का वचन लिया और इसका जीवनभर पालन किया। अपनी सत्यनिष्ठा और अपने पिता के प्रति प्रेम के कारण उन्हें वरदान था कि वह अपनी मृत्यु का समय स्वयं निश्चित कर सकते हैं।

2. पितामह भीष्म ने अपनी देह को त्यागने के लिए माघ माह में शुक्ल पक्ष अष्टमी का चयन किया, जब सूर्यदेव उत्तरायण में वापस आ रहे थे। माघ शुक्ल अष्टमी को उनका निर्वाण दिवस माना जाता है।

3. इस दिन तिल, जल और कुश से पितामह भीष्म के निमित्त तर्पण करने का विधान है। मान्यता है कि ऐसा करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत के प्रभाव से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

महाभारत के अनुसार

शुक्लाष्टम्यां तु माघस्य दद्याद् भीष्माय यो जलम्।

संवत्सरकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।

अर्थ - जो मनुष्य माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्म के निमित्त तर्पण, जलदान आदि करता है, उसके वर्षभर के पाप नष्ट हो जाते हैं।



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Bhishma Ashtami on 2 February, Bhishma had chosen this date to leave his body


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