जीवन मंत्र डेस्क. गुरुवार, 13 फरवरी को कुंभ संक्रांति है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और सूर्य पूजा करने का विशेष महत्व है। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. मनीष शर्मा के अनुसार एक वर्ष में 12 संक्रांतियां आती हैं। सूर्य सभी 12 राशियों में भ्रमण करता है। जब ये ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में जाता है तो इसे संक्रांति कहते हैं। सूर्य जब जिस राशि में जाता है, तब उस राशि के नाम की संक्रांति होती है। जैसे सूर्य मकर राशि में जाता है तो मकर संक्रांति, जब कुंभ में प्रवेश करेगा तो कुंभ संक्रांति। 13 फरवरी को सूर्य का राशि परिवर्तन होने से इस दिन सूर्य की विशेष पूजा करनी चाहिए। यहां जानिए सूर्य पूजा से जुड़ी खास बातें...
पंचदेवों में से एक हैं सूर्य
हिन्दू धर्म में पंचदेव बताए गए हैं। इनमें श्रीगणेश, शिवजी, विष्णुजी, देवी दुर्गा और सूर्यदेव शामिल हैं। किसी भी काम की शुरुआत में इन पांचों देवी-देवताओं की पूजा अनिवार्य रूप से की जाती है। ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा माना गया है। इसी वजह से सूर्य की स्थिति महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस ग्रह के राशि परिवर्तन पर पूजा-पाठ, स्नान-दान जैसे शुभ कर्म करने की परंपरा है।
सूर्य पूजा की सरल विधि
सूर्य पूजा के लिए तांबे की थाली और तांबे के लोटे का उपयोग करना चाहिए। थाली में लाल चंदन, लाल फूल और एक दीपक रखें। लोटे में जल लेकर उसमें लाल चंदन मिलाएं, लोटे में लाल फूल डाल लें। थाली में दीपक जलाएं और ऊँ सूर्याय नमः मंत्र का जाप करते हुए सूर्य को प्रणाम करें। इसके बाद लोटे से सूर्य देवता को जल चढ़ाएं। सूर्य मंत्र का जाप करते रहें। इस प्रकार सूर्य को जल चढ़ाना अर्घ्य देना कहलाता है। ऊँ सूर्याय नमः अर्घ्यं समर्पयामि कहते हुए पूरा जल सूर्य को चढ़ाएं। अर्घ समर्पित करते समय नजरें लोटे के जल की धारा की ओर रखें। जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिंब एक बिंदु के रूप में जल की धारा में दिखाई देगा। सूर्य को जल चढ़ाते समय दोनों हाथों को इतना ऊपर उठाएं कि जल की धारा में सूर्य का प्रतिबिंब दिखाई दे। इसके बाद सूर्य की आरती करें। सात परिक्रमा करें और हाथ जोड़कर प्रणाम करें। पूजा में हुई भूल के लिए क्षमायाचना करें।
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