वाराणसी. तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा...। जैसे स्लोगनों से युवाओं को राष्ट्रप्रेम के लिए प्रेरित करने वाले सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आजाद हिंद फौज बनाई थी। लेकिन उनकी मौत आज भी एक रहस्य है। 23 जनवरी को नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 123वीं जयंती है। इस मौके पर उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में आजाद हिंद मार्ग स्थित सुभाष भवन में दो दिवसीय सुभाष महोत्सव मनाया जाएगा। उसी दिन यहां बोस के मंदिर को आम जनता के लिए खोला जाएगा। इस मंदिर में पुजारी दलित महिला होगी।
महोत्सव विशाल भारत संस्थान द्वारा मनाया जाएगा। संस्था के संस्थापक और बीएचयू के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजीव श्रीवास्तव कई दशकों से सुभाष चंद्र बोस पर रिसर्च कर रहे हैं। उन्होंने अपने मकान का नाम भी सुभाष भवन रखा है। उनके द्वारा सुभाष चंद्र बोस के मंदिर का निर्माण कराया जा रहा है, जो 23 जनवरी को देश की जनता और 40 देशों के सुभाष वादी लोगों दर्शन के लिए खुल जाएगा।
किसी क्रांतिकारी का पहला मंदिर, जहां हर दिन होगी पूजा अर्चना
डॉ. राजीव श्रीवास्तव ने दावा किया कि देश की आजादी में सबसे बड़ा योगदान देने वाले सुभाष चंद्र बोस का यह पहला मंदिर होगा। जहां जाति के बंधन को तोड़ते हुए मंदिर की पुजारी महिला होगी, जो महिला सशक्तिकरण का उदाहरण भी देश को देगी।
यह है मंदिर की खासियत, रंगों के अपने मायने
मंदिर ठीक सुभाष भवन के बाहरी हिस्से में है। 4/4 स्क्वॉयर फिट के क्षेत्रफल में बने इस मंदिर की ऊंचाई 11 फिट है। जिसमें सुभाष चंद्र बोस की आदम कद प्रतिमा स्थापित होगी। प्रतिमा का निर्माण ब्लैक ग्रेनाइट से बनी है। सीढ़ी का कलर लाल और आधा सफेद रंग का है। मंदिर की सीढ़ियों, आधार व प्रतिमा को खास रंग दिया गया है। डॉक्टर राजीव बताते हैं कि, लाल रंग क्रांति का प्रतीक, सफेद शांति का और ब्लैक शक्ति का प्रतीक है। क्रांति से शांति की ओर चलकर ही शक्ति की पूजा की जा सकती है।
सुभाष तीर्थ का होगा उद्घाटन, ऐसे कर सकेंगे दर्शन
मंदिर के कपाट खुलने व बंद होने का समय निर्धारित है। सुबह 7 बजे भारत मां की प्रार्थना के साथ मंदिर का पट जनता के लिए खुल जाएगा। शाम 7 बजे आरती संग पट बंद हो जाएगा। सुबह, दोपहर और शाम को अन्य मंदिरों की तरह सुभाष जी को प्रसाद भी अर्पित किया जाएगा, जो आने वाले लोगों में वितरण भी होगा।
मंदिर में दिखेगा नेताजी से जुड़े इतिहास
मंदिर के ठीक सामने दीवाल पर नेताजी से जुड़ा इतिहास पढ़ने को मिलेगा। जिसे सुभाष वाल कहा जाएगा। कोई चाहे तो मंदिर की परिक्रमा भी आसानी से कर सकता है। आजाद हिंद फौज का स्मृति स्तंभ सिंगापूर में है। इन स्तंभों का नाम एकता, विश्वास और त्याग है। ये प्रतीकात्मक स्तंभ जल्द ही मंदिर के पास सुभाष भवन में बनेगा। मंदिर में रोज प्रतिमा का वस्त्र पुजारी द्वारा बदला जाएगा। वस्त्र सुनहले रंग का होगा। जिसे कारीगरों द्वारा तैयार किया जा रहा है। प्रतिमा के ऊपर छत्र भी सुनहला होगा।
कौन हैं प्रोफेसर डॉक्टर राजीव?
डॉ. राजीव श्रीवास्तव 90 के दशक से कूड़ा बीनने वाले, गरीब बच्चों पर कार्य कर रहे हैं। 700 से ज्यादा बच्चे उनसे जुड़े और उनके मार्गदर्शन में वो कहीं न कहीं रोजगार, शिक्षा, समाजसेवा के क्षेत्र से जुड़ गए। बेसहारा बच्चो के लिए उन्होंने कर्ज लेकर उन्होंने 2019 में सुभाष भवन बनवाया। इस भवन में हर धर्म व वर्ग से संबंध रखने वाले बेसहारा बच्चे रहते हैं। सुभाष भवन में एक तरफ अजान तो दूसरी तरफ घंटा घड़ियाल की धुन पर आरती सुनाई देती है।
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