रामपुर. पार्कोर... आर्ट फॉर्म का ऐसा हुनर जिसमें लोग हवा में कलाबाजियां खाते हुए अपने गंतव्य पर पहुंचते हैं। इसकी शुरूआत फ्रांस के रेमंड बैले ने की थी। 90 के दशक में इसे फिल्मों में अजमाया जाने लगा। लेकिन अब उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर रामपुर में तमाम बच्चे व युवा हैं, जो इमारतों पर या खुले में उछलते-फुदकते और हवा में कलाबाजियां खाते हुए नजर आते हैं। रामपुर के रहने वाले 28 वर्षीय मुजाहिद हबीब उनमें से एक हैं, जिन्हें नहीं पता कि, डर क्या होता है? ऊंचाई जितनी अधिक हो, पार्कोर करने में उन्हें मजा आता है। रामपुर में पार्कोर ग्रुप मुजाहिद ने ही तैयार है। उन्होंने अपनी टीम को लियोनाइन नाम दिया है, जो नित नए कीर्तिमान गढ़ रही है।
जैकी चेन का वीडियो शुरू की थी कलाबाजी, तब पार्कोर क्या, पता नहीं था
मुजाहिद पेशे से आर्किटेक्ट हैं। वे बताते हैं कि 13 साल पहले साल 2007 में हॉलीवुड स्टार जैकी चेन का वीडियो देखकर उन्होंने पार्कोर शुरू किया था। शुरुआत में पिता हबीब अहमद खां और मां तहमीना खान इस बात से डरते थे कि, कहीं उन्हें चोट न लग जाए। कलाबाजियां करने से उन्हें रोकते थे। लेकिन मुजाहिद अपने शौक और जिद को खामोशी से परवान चढ़ाते रहे और अपने जुनून को आगे बढ़ाते रहे। शुरुआत में मुजाहिद उछल कूद मचाते तो उन्हें खुद ही नहीं मालूम था कि वह एक खास किस्म की फनकारी को अंजाम दे रहे हैं। जिसे उन्होंने जैकी चेन को करते देखा।
मुजाहिद की मुहिम में तमाम लोग जुड़े
उनके साथ कुछ उनके रामपुर के ही दोस्त इस आर्ट में शामिल हो गए। जिसके बाद उन्हें पता चला कि यह पार्कोर और फ्री रनिंग का हुनर है। धीरे धीरे मुजाहिद और उनके साथियों ने इस फन में अपने आप को इतना पैबस्त कर लिया कि वह माहिर हो गए। एक साल के अन्दर ही उन्होंने अपना एक क्लब बनाया, जिसे वह टीम लियोनाइन के नाम से पुकारते हैं। इस टीम में अब सैकड़ो युवा शामिल हैं। आज रामपुर में मुजाहिद की पहचान फ्लाइंग मशीन के तौर पर है। वे बताते हैं कि, पार्कोर सिर्फ स्टंट, जम्प्स या फिल्प्स ही नहीं है, बल्कि यह कोई भी कर सकता है और कहीं भी कर सकता है। यह अपने आसपास की चीजों का बेहतर और सकारात्मक इस्तेमाल है। पार्कोर करते समय यह देखना होता है कि अपने अगले मूव के लिए किस चीज का इस्तेमाल किया जा सकता है।
बॉलीवुड में 2011 में मिला काम, फिर सपनों को मिली नई पहचान
मुजाहिद हबीब ने बताया कि, साल 2011 में आदित्य चोपड़ा की फिल्म लेडीज वर्सेज रिकी बहल में उनके इस हुनर को बड़ा प्लेटफार्म मिला था। मुजाहिद हबीब देश के पहले पार्कोर और फ्री रनिंग के नेशनल चैम्पियन हैं। टीम लियोनाइन ने रामपुर में वर्ष 2015 में राष्ट्रीय प्रतियोगिता का आयोजन किया। साल 2012 में मुम्बई में रेडबुल के जरिए आयोजित इंडस ट्रायल पार्कोर एंड फ्री रनिंग कम्पीटीशन में मुजाहिद हबीब ने पहला पायदान हासिल किया। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मुजाहिद ने नेटफिलिक्स के शो अल्टीमेट बीस्ट मास्टर सीजन 2 में भी परफॉर्म किया है। हाल में ही उन्होंने आर्किटेक्चर में अपनी मास्टर डिग्री पूरी की है। उन्होंने अपनी थीसिस भी पार्कोर में ही पूरी की हैं।
टीम के सदस्य अब लोगों को सिखा रहे ये हुनर
वर्तमान में मुजाहिद दिल्ली में अपनी खुद की कम्पनी वैलोसिटा फिटनैस के नाम से चलाते हैं। जिसमें वह पार्कोर और फ्री रनिंग के फंडे सिखाते हैं। मुजाहिद और उनकी टीम मुख्तलिफ पीढ़ी के पांच से अस्सी साल तक के लोगों को पार्कोर और फ्री रंनिग सिखा रहे हैं। मुजाहिद हबीब कहते हैं कि, जिन्दगी बड़ी होनी चाहिए न कि लम्बी। पार्कोर को रामपुर ने कई एथलीट दिए हैं। मो. जौहेब, अमान, आतिफ, सलमान, एहसान जैसे दर्जनों नाम हैं, जो पार्कोर करना अपनी जिन्दगी मानते हैं। अब उनकी टीम स्कूलों और अन्य महानगरों में पार्कोर सिखा रहे हैं। इस कला के प्रचार प्रसार के लिए मुजाहिद ने पारकोर जिम भी खोला है।
क्या है पार्कोर आर्ट फॉर्म?
पार्कोर आर्ट फॉर्म में आने वाली रुकावटों को क्लाइंबिंग, जंपिंग, रनिंग, स्विंगिंग, रोलिंग और वॉल्टिंग के जरिए पार किया जाता है। इसमें परफॉर्मर हवा में उछलता, कूदता और कलाबाजी करता नजर आता है। इसे अकेले या टीम के साथ परफॉर्म किया जाता है। पार्कोर आर्ट फॉर्म की शुरुआत फ्रांस के रेमंड बैले ने की थी। बाद में उनके बेटे डेविड बैले ने अपने दोस्तों के साथ इसे आगे बढ़ाया। फ्रांस का 'यामाकासी', पार्कोर आर्ट फॉर्म का ओरिजिनल ग्रुप है। इसे नौ लोगों ने मिलकर शुरू किया था। पार्कोर को असली पहचान मिलना फिल्मों के जरिए 1990 में मिलना शुरू हुई।
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