
बदायूं. निर्भया के चार दुष्कर्मियों के नाम दो डेथ वॉरंट निकल चुके हैं। वहीं, उसके साथ सबसे ज्यादा दरिंदगी करने वाला नाबालिग दोषी तीन साल की सजा काटकर छूट चुका है। वह दिसंबर 2015 में बाल सुधार गृह से निकलने के बाद अपने गांव नहीं पहुंचा। उसके परिवार ने भी उससे संपर्क करने की कोशिश नहीं की। बदायूं जिला मुख्यालय के करीब 54 किलोमीटर दूर इस नाबालिग दोषी का गांव है। भास्कर इस गांव में पहुंचा और लोगों से बात की।
सुबह के करीब 11 बजे हैं। बदायूं-संभल हाईवे के दोनों ओर खेतों में सरसों की फसल लहरा रही है। गांव में घुसते ही मंदिर है। दाहिनी ओर बने प्राइमरी स्कूल से बच्चों की पढ़ने की आवाजें आ रही हैं। मंदिर के बाहर कुछ लोग खड़े हैं। हमने उनसे निर्भया के नाबालिग दोषी के बारे में बात करने की कोशिश की तो सभी के चेहरों के भाव बदल गए। कुछ तो बुरा मुंह बनाकर वहां से चले गए। झुंड में खड़े एक व्यक्ति ने कहा- हम लोगों को समाज में उसके कारण शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है। हम उसका नाम लेना भी पसंद नहीं करते।
गांव के आखिरी छोर पर है घर
गांव के एक व्यक्ति से हमने निर्भया के नाबालिग दोषी के घर का पता पूछा तो उसने हमें पहले अजीब नजरों देखा। हमने परिचय दिया तो उसने पता बताया। मंदिर से पश्चिम दिशा की ओर जब हम चले तो गांव की स्थिति ठीक दिखी। पक्की सड़कें और नालियां थीं। इन रास्तों से होते हुए हम एक झोपड़ीनुमा कच्चे घर तक पहुंचे। इसके आगे कोई घर नहीं है। घर के बाहर ही चारपाई पर दोषी की मां बैठी थी।
पल्लू में मुंह छिपाकर रोने लगी मां
हमने जैसे ही नाबालिग दोषी के बारे में चर्चा शुरू की, वह पल्लू में मुंह छिपाकर रोने लगी। बिलखते हुए उसने बताया- "वो (पति) मानसिक रूप से कमजोर हैं। कोई काम नहीं करते। मैं कभी दूसरों खेत पर काम करती हूं, तो कभी किसी के जानवर की देखभाल करती हूं। इससे जो कमाती हूं उससे ही घर खर्च चलता है।'
बेटे के बारे में पूछने पर कहा- 'उसे (नाबालिग दोषी को) इस उम्मीद से दिल्ली भेजा था कि वह घर की स्थिति सुधारने में मदद करेगा। लेकिन, बुरी संगत में पड़कर उसने ऐसा काम किया कि हम किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं बचे।' बेटे को साथ रखने के सवाल पर कहा- 'उसने जो किया है, उसके बाद मेरे घर में उसके लिए कोई जगह नहीं है।'
बाहर वालों के आने से गांव के लोग नाराज, मगर मदद भी करते हैं
दोषी की मां ने कहा- 'जो भी बाहर से आता है, वह सिर्फ बेटे के बारे में पूछता है। बाहरवालों के आने से गांव वाले भी नाराज होते हैं। हमारी और गांव की बेइज्जती होती है। सब लोग हमें हिकारत भरी नजरों से देखते हैं। हालांकि, जरूरत पड़ने पर गांव वाले ही मदद के लिए आगे आते हैं। उन्हीं के खेतों पर काम करके परिवार को पाल रही हूं।'
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