जीवन मंत्र डेस्क.कौटिल्य अर्थशास्त्र में आयकर का उल्लेख मिलता है। ये ग्रंथ करीबकरीब 2300 साल पहले लिखा गया है। कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में लिखा है कि सरकार (राजा) की सत्ता, उसके राजकोष की मजबूती पर निर्भर करती है। कौटिल्य ने ये भी कहा कि राजस्व और कर सरकार के लिए आय है, जो उसे अपनी जनता (प्रजा) की सेवा, सुरक्षा और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए मिलती है।
- बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ कौशल किशोर मिश्रा के अनुसार कौटिल्य अर्थशास्त्र ग्रंथ में बताया है कि राजा की सबसे बड़ी शक्ति कोष होता है। यानी अपने राज्य एवं जनता की उन्नति के लिए सबसे पहले कोष कैसे बढ़ाया जाए इस बात पर ध्यान देना चाहिए। कौटिल्य के अनुसार बजट यानी कोष बढ़ाना और उसे जनता के कल्याण में कैसे लगाया इस व्यवस्था को ही बजट कहा जाता है।
- डॉ कौटिल्य के अर्थशास्त्र में कर की व्यवस्था का खासतौर से ध्यान रखा गया है। जिसके अनुसार राजा यानी देश शासन को नैतिकता को ध्यान में रखते हुए अपना बजट बनाना चाहिए। कौटिल्य के अनुसार नैतिकता के आधार पर ही किसी राज्य या देश की उन्नति हो सकती है।
कौटिल्य के अनुसार कैसा हो बजट
1. पहला काम टैक्सेशन ठीक करना
कौटिल्य के अनुसार कर व्यवस्था यानी टैक्स ठीक होना चाहिए। अर्थशास्त्र ग्रंथ के अनुसार जनता पर टैक्स का बोझ कम होना चाहिए। इसलिए मधु सिंद्धांत के अनुसार टेक्स लेना चाहिए यानी मधुमक्खी जिस तरह फूलों से रस लेकर शहद बनाती है जिससे फूलों को नुकसान नहीं होता और शहद से लोगों को फायदा मिलता है। सरकार को इसी तरह ही आम लोगों से कर लेना चाहिए।
2.न्यूनवर्ग को बढ़ाना
अर्थशास्त्र के अनुसार राजा का कार्य समाज के सबसे न्यून वर्ग को बढ़ाना होता है। इस तरह सरकार के बजट में दूसरी महत्वपूर्ण बात न्यून वर्ग वालों को ऊपर उठाना है। सरकार को ऐसी योजनाएं, सुविधाएं या छुट देनी चाहिए जिससे गरीब लोगों का स्तर बढ़े।
3.पर्यावरण
कौटिल्य ने देश के समग्र विकास के लिए अपने अर्थशास्त्र में पर्यावरण को महत्व दिया है। इसके अनुसारपर्यावरण ठीक करने के लिए कोई दंड या कर का प्रवधान होना चाहिए। जिससे राज्य का समग्र विकास हो। कौटिल्य ने कृषि और जल संसाधन को पर्यावरण का प्रमुख अंग माना है। अर्थशास्त्र के अनुसार राजा कोइनके लिए ऐसी योजनाएं बनानी चाहिए जिससे जनता को सुविधा मिले और उसके बदले कर के रूप में राजकोष बढ़े।
4.पशुपालन
कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में पशुपालन पर भी जोर दिया है।कौटिल्य ने पशु को राजकोष का अंग मानते हुए पशु को राजा की संपत्ति बताया है। अर्थशास्त्र के अनुसार कृषि के लिए पशु आवश्यक है। जिससे दूध, खाद और अन्य जरूरी चीजें मिलती हैं। वहीं राजा की सेना में हाथी और घोड़े जरूरी अंग माने गए थे।
5.निमार्ण कार्य
अर्थशास्त्र में कौटिल्य के अनुसार राजा को अपने राज्य यानी देश के विकास के लिए जरूरी चीजों का निर्माण करवाना चाहिए। इनमें कुएं, बावड़ियां, तालाब और अन्य चीजें शामिल थीं। आज के दौर में उसी तरह सरकार को भी देश की उन्नति के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के लिए खर्चा करना चाहिए।
आम लोगों का फायदा अति आवश्यक
कौटिल्य का मानना है कि राज्य यानी देश में रह रहे आम लोगों का फायदा अतिआवश्यक होता है। अर्थशास्त्र के अनुसार ऊपर बताई गई 5 बातों के अलावा अंत में बजट प्राप्त करने के बाद होने वाले लाभ को अंतिम व्यक्ति तक समानता के आधार पर बांटना ही बजट का मुख्य आधार होना चाहिए। जिस बजट से आम लोगों का फायदा हो वो अति आवश्यक है।
अर्थशास्त्र के अनुसार समानता के आधार पर विकास
अलब्धलाभार्था लब्धपरिरक्षणी रक्षितविवर्धनी वृद्धस्य तीर्थे प्रतिपादनी च
अर्थ -कौटिल्य के अनुसारजो प्राप्त न हो वो प्राप्त करना जो प्राप्त हो गया हो उसे संरक्षित करना जो संरक्षित हो गया वो समानता के आधार पर बांटना जो समानता के आधार पर बांटने की बात है।
श्रेणियों के अनुसार कर निर्धारण
कौटिल्य के समय मदीरा पर सबसे ज्यादा कर वसूला जाता था। इसके अनुसार पूरे देश में शराब पर टैक्स सबसे ज्यादा होना चाहिए। श्रेणियों के अनुसार कर का निर्धारण होना चाहिए। कौटिल्य का कहना है कि कर का निर्धारण नैतिकता के अनुसार अलग-अलग श्रेणियों में होना चाहिए। कौटिल्य के समयसबसे कम टैक्स भोजन और कृषि पर लिया जाता था। वहीं वैश्यालय और मदीरा जैसे अनैतिक एवं विलासिता वाली सुविधाओं पर सबसे ज्यादा टैक्स वसूला जाता था।
प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है इनकम टैक्स का जिक्र
हजारों साल पहले लिखी गई मनुस्मृति में आयकर के बारे में लिखा है कि शास्त्रों के अनुसार राजा कर लगा सकता है। करों का संबंध प्रजा की आय और व्यय से होना चाहिए। इसमें ये भी कहा गया था कि राजा को हद से ज्यादा कर लगाने से बचना चाहिए। करों की वसूली की ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि प्रजा अदायगी करते समय कठिनाई महसूस न करें। इसके अलावा शुक्रनीति, बृहस्पति संहिता और महाभारत के शांतिपर्व के 58 और 59वें अध्याय में भी इस बारे में जानकारी दी गई है। वहीं तुलसीदास जी ने भी अपनी दोहावली में अप्रत्यक्ष रूप से कर का जिक्र किया है। उनके अनुसार सूर्य की तरह कर लिया जाना चाहिए।
दोहा
बरषत हरषत लोग सब करषत लखै न कोइ।
तुलसी प्रजा सुभाग ते भूप भानु सो होइ ॥
गोस्वामी तुलसीदास ने अप्रत्यक्ष कर संग्रह की बात कही है। उन्होंने इसके लिए सूर्य का उदाहरण लिया है। सूर्य जिस प्रकार पृथ्वी से अनजाने में ही जल खींच लेता है और किसी को पता नहीं चलता, किन्तु उसी जल को बादल के रूप में एकत्र कर वर्षा में बरसते देखकर सभी लोग प्रसन्न होते हैं। इसी रीति से कर संग्रह करके राजा द्वारा जनता के हित में कार्य करना चाहिए।
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