Thursday, January 30, 2020

राजाओं के आभूषणों को देख नाराज हुए थे बापू; कहा था- अब समझ में आया कैसे सोने की चिड़िया से गरीब हुआ देश

वाराणसी. स्वतंत्रता आंदोलन के नायक महात्मा गांधी की आज पुण्यतिथि है। साल 1948 में आज के ही दिन भले ही गांधीजी की गोली मारकर हत्या कर दी गई हो, लेकिन आज भी वे विचारों में जीवित हैं। गांधीजी का काशी से गहरा लगाव था। वे अपने जीवनकाल में 12 बार काशी आए। पहला राजनीतिक उद्बबोधन गांधीजी ने 96 साल पहले 5 फरवरी 1916 को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दिया था। बीएचयू के इतिहास विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनुराधा सिंह और छात्र शशिकांत यादव ने वाराणसी के इतिहास पर काम किया है। गांधीजी की काशी यात्रा से जुड़े दस्तावेजों को प्रोफेसर ने जुटाया है।

कार्यक्रम में जुटे थे कई रियासतों के राजा
डॉक्टर अनुराधा ने बताया कि, दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद 5 फरवरी 1916 को महात्मा गांधी दूसरी बार काशी पहुंचे थे। सेंट्रल हिंदू कॉलेज परिसर में काशी हिंदू विश्वविद्यालय का स्थापना समारोह मनाया जा रहा था। साथ में बीएचयू के संस्थापक पं. मदन मोहन मालवीय, एनी बेसेंट, दरभंगा के राजा रामेश्वर सिंह के साथ कई रियासतों के राजा वहां मौजूद थे। गुजराती वेशभूषा (धोती, पगड़ी और लाठी) में आए गांधीजी ने मंच से लोगों के सामने तीन बातें रखी थीं।

भारत का स्वराज कैसा चाहते हैं?
गांधीजी ने कहा था- देश की जनता, छात्र और आप सभी भारत का स्वराज कैसा चाहते हैं? कांग्रेस और मुस्लिम लीग के लोग स्वराज को लेकर क्या सोचते हैं, यह स्पष्ट होना चाहिए? इसी बीच गांधीजी की नजर वहां मौजूद राजाओं के आभूषणों पर पड़ी। उन्होंने कहा- अब समझ में आया कि हमारा देश सोने की चिड़िया से गरीब कैसे हो गया? आप सभी को अपने स्वर्ण जड़ित आभूषणों को बेचकर देश के जनता की गरीबी दूर करनी चाहिए।

काशी की गलियां गंदी होने पर जताया था दुख
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए गांधीजी ने कहा- 13 साल पहले भी काशी विश्वनाथ मंदिर की गलियां गंदगी से भरी थीं और आज भी ठीक वैसे ही हैं। ऐसे में भारत का भविष्य और यहां आने जाने वाले लोग देखकर क्या सोचते होंगे? एनी बेसेंट ने उनको रोकने की कोशिश भी की थी, पर मालवीय जी के कहने पर उन्होंने अपना भाषणजारी रखा था। इससे पहले महात्मा गांधी पहली बार 1902-03 में काशी की धार्मिक यात्रा पर आए थे। गंगा स्नान के बाद उन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर में दर्शन पूजन किया था। वे यहां गलियों की गंदगी देख कर बहुत दुखी हुए थे। अपनी इस पहली काशी यात्रा के दौरान अस्वस्थ चल रही एनी बेसेंट से भी मिलने गए थे।

वायसराय लॉर्ड हार्डिंग पर कसा था तीखा तंज

अनुराधा सिंह बताती हैं कि,गांधीजी ने वायसराय लॉर्ड हार्डिंग के दौरे व सुरक्षा व्यवस्था पर भी तंज कसा था। कहा था कि, पूरा बनारस वायसराय लॉर्ड हार्डिंग के आने से छावनी बना है। यह बहुत ही शर्म का विषय है। जिस शासक को अपने खुद के जीवन का भय हो वो जनता की रक्षा कैसे करेगा? गांधीजी ने स्वयं को क्रांतिकारी कहते हुए वायसराय के लिए बहुत ही कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया था। भारत में वायसरॉय के लिए इतने कठोर शब्द शायद ही किसी ने सार्वजनिक मंच से में कहे थे।

जिस भवन में ठहरते थे मालवीय-गांधी, आज भी सुरक्षित
दो दिवसीय काशी प्रवास के दौरान गांधीजी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सिंह द्वार के बाहर लंका पर सरस्वती भवन में मालवीय जी के निवास में रुके थे। आज यह भवन शहर के एक बड़े व्यवसायी के पास है। जिस कमरे में मालवीयजी और गांधीजी रुकते थे, वह आज भी वैसे ही है। भवन के पिछले हिस्से में गर्ल्स हॉस्टल चलता है। यहां की देखभाल करने वाले पवन ने बताया वो हिस्सा बन्द रहता है। उसका मुख्य द्वार भी दूसरी ओर से है।


बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में मालवीय भवन के पीछे गांधी चबूतरा है। 21 जनवरी 1942 को गांधीजी ने इसी चबूतरे पर बैठकर संध्या भजन किया था। ये चबूतरा आज भी विश्वविद्यालय के मुख्य सुरक्षा अधिकारी कार्यालय के सामने गार्डन में मौजूद है। विश्वविद्यलय द्वारा यहां 1998 में यहां शिलापट्ट भी लगाया गया है।

7वीं यात्रा में गांधीजी ने युवाओं को चरखे का महत्व समझाया
डॉक्टर अनुराधा सिंह ने बताया कि, 10 फरवरी 1920 को गांधीजी छठी बार काशी आए थे। यहां उन्होंने काशी विद्यापीठ की आधार शिला रखी और बाद में उन्होंने टाउन हाल में लोगों को संबोधित किया। राष्ट्रीय शिक्षा पर बोलते हुए कहा था कि हम सभी अधकचरा ज्ञान से बचें। गैर जिम्मेदार न बनें। उसके बाद उन्होंने नागरी प्रचारणी सभा की बैठक में भाग लिया। सातवीं यात्रा के दौरान 17 अक्टूबर 1925 को काशी विद्यापीठ के मैदान में उन्होंने युवाओं को चरखे का महत्व समझाया था। कहा था कि, चरखे से देश की दरिद्रता कम हो जाएगी, इसको आगे बढ़ाएं। 25 अक्टूबर 1936 को गांधीजी 11वीं बार काशी आए थे। उन्होंने यहां भारत माता मंदिर की स्थापना की थी।

आखिरी यात्रा में किया था दूसरी यात्रा का जिक्र
आखरी बार गांधी जी 21 जनवरी 1942 को काशी हिंदू विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बुलावे पर रजत जयंती समारोह में पहुंचे थे। विश्वविद्यालय के एमपी थियेटर के ग्राउंड में उन्होंने अपने भाषणमें कहा था कि, 25 साल पहले मैं यहां मालवीय जी के बुलावे पर आया था। सोचा बड़े-बड़े महाराज, वायसराय के बीच मुझ फकीर का क्या काम? उस समय तक तो मैं महात्मा भी नहीं बना था। कहीं भी कोई सेवक हो तो वो अपनों को खींच लेता है। देश में आज दूसरी लहर है, मालवीय जी की कृपा मुझ पर हमेशा रही है। राष्ट्र निर्माण हो रहा है। इस यात्रा के दौरान वे शिव प्रसाद गुप्त के नगवा स्थित सेवा उपवन में रुके थे।



Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today
21 जनवरी 1942 को रजत जयंती समारोह में मंच पर गांधीजी।
गांधी चबूतरा, साल 1942 में गांधीजी ने यहां संध्या पूजन पाठ किया था।
1916 में गांधीजी ने पहली बार राष्ट्र के नाम उद्बोधन सेंट्रल हिंदू स्कूल के इसी ग्राउंड में दिया था।
1916 में गांधीजी और मालवीयजी एक साथ सरस्वती भवन में रुके थे।
21 जनवरी 1942 को रजत जयंती पर एमपी थियेटर में गांधीजी ने भाषण दिया था। आज पैवेलियन बना है।


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/2u5dQtU

SHARE THIS

Facebook Comment

0 comments: